नीलेश कुंभानी के मामले में आख़िर क्या हुआ?
कांग्रेस के एक नेता और उम्मीदवार ने कहा कि बीजेपी सूरत के एक होटल में गई और कुछ अन्य उम्मीदवारों को चुनाव से हटने के लिए कहा. बहुजन समाज पार्टी के एक प्रत्याशी से संपर्क नहीं हो सका। भाजपा ने पुलिस को उसके पीछे भेजने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल किया। पुलिस ने उन्हें मध्य प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर किया और उनका फॉर्म रद्द कर दिया. लेकिन बीजेपी कह रही है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया.
उनका कहना है कि मुकेश दलाल निष्पक्ष तरीके से जीते हैं और उन पर लगे आरोप सही नहीं हैं. नीलेश कुम्भानी, जो कांग्रेस का हिस्सा बनना चाहते थे, अब लापता हैं। सूरत में लोग उसे ढूंढ नहीं पा रहे हैं और उसके घर पर ताला लगा हुआ है।
कुंभाणी कहां हैं, यह कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं पता. हालाँकि, कांग्रेस का समर्थन करने वाले कुछ लोगों ने कुम्भानी के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और किसी ऐसे व्यक्ति की तस्वीर टांग दी, जिसके बारे में उनका मानना था कि उसने उन्हें धोखा दिया है। पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया. 21 तारीख की सुबह, नीलेश कुंभानी एक बैठक के लिए कलेक्टर कार्यालय गए, और उनके साथ कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता भी आए।
कुंभाणी चला गया और कोई उसे ढूंढ नहीं सका। कांग्रेस नेता भी कह रहे हैं कि उनसे संपर्क नहीं किया जा सकता. कांग्रेस पार्टी के नेता असलम सैकलवाला ने बीबीसी गुजराती से बात करते हुए कहा कि 21 तारीख को दोपहर 12:30 बजे उनकी नीलेश कुम्भानी से फोन पर बात हुई.
कुंभानी ने कहा कि वह काफी दबाव में हैं और वह किसी चीज में शामिल नहीं हैं। उसके बाद से सैकलवाला ने उनसे बात नहीं की है. असलम सैकलवाला ने कहा कि पार्टी को नहीं पता कि कुंभानी का समर्थन करने वाले तीन लोग कौन थे.
कुम्भानी ने इन्हें खुद चुना था, लेकिन बाद में पार्टी को इनके नाम पता चल गये. उन्होंने कुंभानी पर सबकुछ पहले से प्लान करने का आरोप लगाया और कहा कि यह एक गुप्त योजना की तरह है. उन्हें लगता है कि कुंभानी शर्मिंदा महसूस करेंगे और अब लोगों को नहीं देखना चाहेंगे।
कांग्रेस का कहना है कि ये सब बीजेपी की वजह से हुआ, लेकिन बीजेपी का कहना है कि ये सच नहीं है. 21 अप्रैल को कांग्रेस प्रत्याशी नहीं चुने जाने के बाद 22 अप्रैल को मुकेश दलाल को विजेता घोषित कर दिया गया. ये सब सिर्फ एक ही दिन में हुआ.
नीलेश कुंभानी कहां हैं?
नीलेश कुंभानी सूरत के सरथाना इलाके में स्वास्तिक टॉवर में रहते हैं. जब बीबीसी गुजराती टीम कुंभानी के घर पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था और पुलिस मौजूद थी. पुलिस ने बताया कि उनके घर पर कोई मौजूद नहीं है.
असलम सैकलवाला ने उनके ठिकाने के बारे में अनुमान लगाते हुए बीबीसी को बताया, “हमें जानकारी मिली है कि कुंभानी इस समय अपने परिवार के साथ गोवा में हैं. हम लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नहीं कर पा रहे हैं.”
कांग्रेस नेता नैशाद देसाई ने बीबीसी गुजराती से कहा, ”कुंभानी का पर्चा रद्द करने को लेकर हम गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर करने जा रहे हैं लेकिन वे संपर्क में नहीं हैं. उन्होंने अभी तक हमें हलफनामे की कॉपी नहीं दी है. जिसके कारण हम ऐसा कर सकें.”
“कुंभानी ने जिस तरह से हलफनामा दायर किया है, उसकी कोई प्रति नहीं दी गई है, इसे देखते हुए उनकी भूमिका भी संदिग्ध लगती है.”
अटकलें लगाई जा रही हैं कि कुंभानी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो बीजेपी ने इन अटकलों पर चुप रहना ही मुनासिब समझा.
कैसे पता चला कि फॉर्म में समर्थकों के हस्ताक्षर फर्ज़ी हैं?
सूरत शहर बीजेपी के अध्यक्ष निरंजन ज़ांज़मेरा ने बीबीसी गुजराती को बताया, “जब बीजेपी को पता चला कि नीलेश कुंभानी के फॉर्म में गड़बड़ी है तो पार्टी नेता सक्रिय हो गए. हमने कलेक्टर को एक हलफनामा दिया कि कुंभानी के फॉर्म में समर्थकों के हस्ताक्षर फर्जी हैं. इसलिए उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई.”
हालांकि, कुंभानी के वकील ज़मीर शेख ने कहा, “19 तारीख को, जब फॉर्म का सत्यापन किया जा रहा था तो भाजपा चुनाव एजेंट ने आपत्ति जताई. इससे पहले अगर समर्थकों ने कलेक्टर को एक शपथ पत्र दिया था कि उनके हस्ताक्षर फर्जी थे तो भाजपा को इसके बारे में कैसे पता चला?”
कांग्रेस नेता की उम्मीदवारी रद्द होने के बाद बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के खिलाफ निर्दलीय और बसपा उम्मीदवार मैदान में थे. हालांकि आखिरी दिन इन सभी ने भी पर्चा वापस ले लिया.
इस संबंध में 23 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने स्वीकार किया कि कांग्रेस उम्मीदवार का फॉर्म रद्द होने के बाद बीजेपी ने निर्दलीय और अन्य उम्मीदवारों से संपर्क किया था और उन्हें फॉर्म वापस लेने के लिए कहा था.
जब उनसे सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द होने को लेकर सवाल पूछा गया कि क्या बीजेपी ‘निम्न स्तर’ की राजनीति कर रही है? इस पर विनोद तावड़े ने कहा, “अगर कोई विपक्षी उम्मीदवार गलत तरीके से फॉर्म भरता है तो उस पर आपत्ति जताना निम्न स्तर की राजनीति नहीं है. अगर हम स्वतंत्र उम्मीदवारों से अनुरोध करते हैं और वे फॉर्म वापस ले लेते हैं तो यह निम्न स्तर की राजनीति नहीं है.”
जब रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या सभी प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों से फॉर्म वापस करने के लिए संपर्क किया गया था? विनोद तावड़े ने कहा, ‘हां, हमने फॉर्म वापस करने के लिए सभी उम्मीदवारों से संपर्क किया और फॉर्म भरने से पहले ही उन्हें समझाने की कोशिश की थी. ‘
उन्होंने यह भी कहा, ‘भाजपा चुनाव जीतने के लिए लड़ती है और वह भी चुनाव आयोग के नियमों के तहत.
नीलेश कुंभानी का पर्चा रद्द होने के बाद अन्य प्रत्याशियों की भूमिका अहम हो गयी. आठ में से सात उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. लेकिन बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल भारती की उम्मीदवारी वापस नहीं ली गई.
दबाव की राजनीति?
इस बारे में नवसारी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नैशाद देसाई ने कहा, ”हमने बीएसपी के अश्विन बारोट, सुरेश सोनावने से फोन पर बातचीत की. कांग्रेस प्यारेलाल को समर्थन देने के लिए राज़ी हो गई. हमने उनसे उम्मीदवार को गुजरात से बाहर ले जाने के लिए कहा. लेकिन अचानक दोपहर 2 बजे सोमवार को नामांकन पत्र वापस ले लिया गया. सूरत में चुनाव होने की उम्मीद टूट गई.”
वहीं, बसपा के सूरत ज़िला अध्यक्ष सतीश सोनवणे ने कहा, ”पिछले दो दिनों से हमने सूरत में जिस तरह की घटनाएं देखी हैं, उससे हमें अंदाज़ा हो गया है. हमें पता था कि हमारे उम्मीदवार पर दबाव होगा. हमने प्यारेलाल को भूमिगत कर दिया.”
उन्होंने कहा, “वो हमारे संपर्क में थे. लेकिन सोमवार को उनसे संपर्क नहीं हो सका. हमने उनकी तलाश शुरू की लेकिन मीडिया के माध्यम से पता चला कि प्यारेलाल कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे और अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया था. हम वहां गए लेकिन वह वहां से जा चुके थे और अब वापस आ गए हैं.” उसके बाद से संपर्क नहीं किया गया.”
बीबीसी गुजराती ने प्यारेलाल से बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका.
हमने एक और निर्दलीय उम्मीदवार रमेश बरैया से संपर्क किया. रमेश बरैया ने कहा, “मैंने कांग्रेस नेता से बात की और उनसे मेरा समर्थन करने को कहा. लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया.”
“मैंने बीजेपी के खिलाफ नहीं लड़ने का फैसला किया. इसमें खर्चे भी हैं. मैंने कांग्रेस को इन खर्चों के बारे में बताया लेकिन उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया. इसलिए मैंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली.”
हालाँकि, जब हमने रमेश बरैया से पूछा कि क्या उन्होंने किसी लालच या दबाव के कारण अपनी उम्मीदवारी वापस ली है? अपने जवाब में उन्होंने कहा, “नहीं, मुझे कोई पैसे की पेशकश नहीं की गई और न ही मुझ पर कोई दबाव था. मैंने स्वेच्छा से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली.”